चंदन शर्मा
दिल्ली में शायद कई दशकों में पहली बार ऐसा हुआ है. दसवीं और बारहवीं के नतीजों में इन स्कूलों के छात्रों ने पब्लिक और कॉन्वेंट स्कूलों को तो कड़ी टक्कर दी ही है और बेहतर परिणाम दिए हैं. पर इससे भी बड़ी बात यह है की दिल्ली के सरकारी स्कूलों में प्रवेश के चाह रखने वालों की भीड़ एकाएक बढ़ गयी है. दिल्ली के शिक्षा मंत्री अरविंदर सिंह और शिक्षा सचिव रीना रे की मानें तो दिल्ली के सरकारी स्कूलों में प्रवेश के लिए ९२००० आवेदन आ चुके हैं और इस संख्या में ५२००० का और इजाफा होने की आशा है.
यानी की दिल्ली के सरकारी स्कूलों में इस बार करीब १.४० लाख छात्र प्रवेश के इच्छुक है. यह चमक-दमक वाले आदम्बर्पूर्ण और मोटी फीस वसूलने वाले निजी स्कूलों के लिए चिंता का विषय हो सकता है. पर आम अभिवावकों के लिए संतोष का कारण है जो जीवन की जरूरतें मुश्किल से पूरा करते हैं और अपने बच्चों के बेहतर शिक्षा के मुश्किल से फीस जुटा पाते हैं. इस बार के परिणामों से कम से कम वह ये आशा तो रख ही सकते हैं की सरकारी स्कूल में पढाने से उनके बच्चे पिछादेंगें नहीं और इन निजी स्कूल के छात्रों के बराबर या उनसे बेहतर प्रदर्शन कर सकते है. आंकडों की और देखें तो इन स्कूलों के औसत परिणाम दसवीं और बारहवी में ८० से ९० फीसदी तो रहे ही हैं. पर इससे बढ़कर यह की इनके छात्र ९५ फीसदी से भी ज्यादा अंक लाने में सफल रहे हैं जो किसी भी स्कूल और छात्र का सपना होता है. निश्चित रूप से मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, शिक्षा मंत्री अरविंदर सिंह और शिक्षा विभाग की नीतियों के साथ-साथ योग्य शिक्षकों का मार्गदर्शन और सबसे बढ़कर छात्रों की कड़ी मेहनत इस अभूतपूर्व सफलता के कारक रहे हैं. और, इन्ही सब ने इन स्कूलों के प्रति आस्था वापस लौटाई है और निजी स्कूलों का ahankaar भी टूटा है.
पर अभी भी कई कमियां हैं जिनमें व्यापक सुधार की जरूरत है. इनमें बेहतर शिक्षण के साथ सभी स्कूलों में समान और स्तरीय शिक्षण, छात्रों को बेहतर वक्तृत्व कला , कंप्यूटर शिक्षण, खेल-कूद व अन्य पाठ्येतर गतिविधियों का विस्तार इन स्कूलों में जरूरी है. ताकी बेहतर विकास के लिए ये निजी स्कूलों की तरफ़ ना देखें .
कभी मेट्रो, बस में सफर करते हुए, या अपनी गाड़ियों में सफर करते हुए जब स्कूली छात्र की भीड़ देखतें हैं तो अभिभावकों के पसीने छूट जाते हैं. कई बार तो इन्हे अच्छी शिक्षा के लिए १५ से २० किलोमीटर तक दूर जाना पड़ता है. यह स्थिति दिल्ली के छात्रों के लिए आम है और इसे ख़त्म करने की जरूरत है. अमेरिका जैसे ‘विकसित’ देशों में भी बच्चों के लिए स्कूल नजदीक में ही उपलब्ध होते हैं और साथ ही वहां सरकारी और निजी स्कूलों जैसी कोई स्थिति नही है. आख़िर यह स्थिति यहाँ क्यों नही हो सकती है.
आपकी सूचना सुखद है। यह पता करना होगा कि राजस्थान की तरह कहीं दिल्ली में यह व्यवस्था तो शुरू नहीं हो गई कि विद्यार्थी प्रवेश तो सरकारी विद्यालय में लेते हैं लेकिन पढ़ाई निजी कोचिंग सेंटर पर करते हैं। ऐसे कोचिंग सेंटर मेडिकल व इंजीनियर की तैयारी करवाते हैं और बच्चों को अपने यहां दसवीं से ही रखना शुरू कर देते हैं। महज सत्रांक लेने के लिए विद्यार्थियों का प्रवेश सरकारी विद्यालयों में होता है। राजस्थान में तो कम से कम ऐसा ही हो रहा है।
जवाब देंहटाएंThere is three points that increase no.of students towards govt. institute :
जवाब देंहटाएं1.Parents fell, govt. inst students are more labourious than private inst.
2.In govt inst teachers are coming after facing all india/ state competition so, he can guide students in competitive field/exam.
3. tuition fee high in private ins.after sixth pay commission.
aapko gmail par ek aamantran bheja gaya hai ............... hamare samudayik blog " sach bolna mana hai " par apne article post karne hetu .............................plz consider this
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