चंदन शर्मा
तो यह एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया की राहुल गाँधी फिलहाल प्रधान मंत्री नही बनेंगे. पर राहुल के प्रयास (और उनकी ८७००० kilometer की यात्रा) से जो देश भर के युवा ने इस बार जागकर जो संदेश दिया है वह आइने की तरह साफ़ है की बगैर काम के देश के मतदाताओं को भरमाया नही जा सकता है. इस बार चुनाव परिणाम में जो तस्वीर सामने आयी है उसमें साफ़ है की हर युवा जो काम करने का जज्बा रखता है उसका लोगों ने समर्थन किया है. चाहे वह राहुल हों या उसकी टीम के अशोक तंवर, सचिन पायलट, जीतेन्द्र सिंह या संदीप दीक्षित हों या ६० साल के युवा नीतीश कुमार हों.
नीतिश को युवा कहना थोड़ा अटपटा लग सकता है पर हर वह आदमी जो कुछ नया करने और विपदा को अवसर के रूप में बदलने में सक्षम है वह युवा है. और नीतीश कुमार इस कसौटी पर खरे उतरते है. ऐसे में आर्श्चय नही होना चाहिए की राहुल अभी भी इस बेदाग़ और ‘युवा’ नीतीश के साथ के पक्षधर हैं.
युवा कांग्रेस के अशोक तंवर इस युवा के दूसरे उदाहरण हैं. जिन्होंने लंबे समय तक यूथ कांग्रेस के साथ रहकर कांग्रेस की उपेक्षित इकाई को जीवंत और सार्थक बनाया. कहने की जरूरत नही है की राहुल का मार्गदर्शन इसमें प्रमुख रहा पर इस लोकसभा चुनाव में तंवर ने सिरसा में चौटाला और भजनलाल का जिस तरह से प्रभुत्व तोडा वह अपने आप में नया है.
संदीप दीक्षित न सिर्फ़ दिल्ली की मुख्या मंत्री के सुपुत्र है पर उससे बढ़कर उन्होंने यमुना पार क्षेत्र में काम दिखाया है उसे क्षेत्र की जनता ने भी हाथों हाथ लिया है. यही बात सचिन पायलट और दर्जनों ‘युवा’ उमीदवारों पर भी लागू होती है चाहे वे किसी भी पार्टी से हों. काम के बजाय जनता को फालतू मुद्दों में उलझा कर चुनाव जीतने की चाह रखने वालों के लिए यह सबक है चाहे वे लेफ्ट के हों या बीजेपी के या अन्य किसी पार्टी से. जनता को काम चाहिए और इस बार उन्होंने वोट इसी के लिए दिया है.
तो यह एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया की राहुल गाँधी फिलहाल प्रधान मंत्री नही बनेंगे. पर राहुल के प्रयास (और उनकी ८७००० kilometer की यात्रा) से जो देश भर के युवा ने इस बार जागकर जो संदेश दिया है वह आइने की तरह साफ़ है की बगैर काम के देश के मतदाताओं को भरमाया नही जा सकता है. इस बार चुनाव परिणाम में जो तस्वीर सामने आयी है उसमें साफ़ है की हर युवा जो काम करने का जज्बा रखता है उसका लोगों ने समर्थन किया है. चाहे वह राहुल हों या उसकी टीम के अशोक तंवर, सचिन पायलट, जीतेन्द्र सिंह या संदीप दीक्षित हों या ६० साल के युवा नीतीश कुमार हों.
नीतिश को युवा कहना थोड़ा अटपटा लग सकता है पर हर वह आदमी जो कुछ नया करने और विपदा को अवसर के रूप में बदलने में सक्षम है वह युवा है. और नीतीश कुमार इस कसौटी पर खरे उतरते है. ऐसे में आर्श्चय नही होना चाहिए की राहुल अभी भी इस बेदाग़ और ‘युवा’ नीतीश के साथ के पक्षधर हैं.
युवा कांग्रेस के अशोक तंवर इस युवा के दूसरे उदाहरण हैं. जिन्होंने लंबे समय तक यूथ कांग्रेस के साथ रहकर कांग्रेस की उपेक्षित इकाई को जीवंत और सार्थक बनाया. कहने की जरूरत नही है की राहुल का मार्गदर्शन इसमें प्रमुख रहा पर इस लोकसभा चुनाव में तंवर ने सिरसा में चौटाला और भजनलाल का जिस तरह से प्रभुत्व तोडा वह अपने आप में नया है.
संदीप दीक्षित न सिर्फ़ दिल्ली की मुख्या मंत्री के सुपुत्र है पर उससे बढ़कर उन्होंने यमुना पार क्षेत्र में काम दिखाया है उसे क्षेत्र की जनता ने भी हाथों हाथ लिया है. यही बात सचिन पायलट और दर्जनों ‘युवा’ उमीदवारों पर भी लागू होती है चाहे वे किसी भी पार्टी से हों. काम के बजाय जनता को फालतू मुद्दों में उलझा कर चुनाव जीतने की चाह रखने वालों के लिए यह सबक है चाहे वे लेफ्ट के हों या बीजेपी के या अन्य किसी पार्टी से. जनता को काम चाहिए और इस बार उन्होंने वोट इसी के लिए दिया है.
युवाओं को लेकर आपका उत्साह और विवेक उचित ही है।
जवाब देंहटाएंबस देखना यह होगा कि नये और बेहतर सर्वसमावेशी विचारों की दृष्टि से ये युवा कितने बेहतर साबित होते हैं।