रविवार, 6 अप्रैल 2014

ताकि लोकतंत्र जिन्दा रहे


इन दिनों चुनाव का बेहद दिलचस्प नज़ारा देखने को मिल रहा है, चुनाव का जो शोर सडकों पर है वह लोगों के बीच से लगभग नदारद है। कहने को तो चुनाव के 'परिणाम' चुनावों से बहुत पहले ही आ गए हैं पर लोगों ने अपनी दिल की बात कुछ यूं दिल से चस्पां  कर लिया है कि मानों उन्होंने कसम खा रखी हो कि चुनाव से पहले दिल से बात निकल जाए तो क्या कहने? बिहार में जहां ट्रेनों में चुनाव चर्चा हमेशा ही गुलज़ार होती थी, एकाएक वे भी मौन-मोहन का रूप ले चुके हैं। वैसे चुनाव से परे रेल का जनरल डब्बा एक मिनी भारत का रूप ही होता है और अगर वहाँ से चुनाव-चर्चा गायब है तो साफ़ है कि लोग इन चर्चाओं से परे रहना चाहते हैं। यह अलग बात है सोनिया-राहुल, मोदी-आडवाणी व अन्य दिग्गज देश में अलख जगाने में जुटें हैं ताकि देश जागे। पर लोग हैं कि चुनावों में उनका दिल  लगता ही नहीं। अब अभियान चलाये जा रहे हैं। देश के लिए आप भी करें वोट ताकि लोकतंत्र जिन्दा रहे।