शनिवार, 5 सितंबर 2009

सरस्वती, व्यास सम्मान में पठन-पाठन की चिंता

लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार चिंतित हैं इन दिनों. उनकी चिंता यह है कि आजकल मध्य वर्ग में साहित्यिक पुस्तकों को पढने का शौक गायब होता जा रहा है. पुस्तकालय खाली पड़े हुए हैं. यहाँ तक कि संसद के पुस्तकालय, जो कि देश के बेहतरीन पुस्तकालयों में से एक है, में लोग बेहद कम दिखाई देते हैं. अपनी यह चिंता उन्होंने देश के प्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान और व्यास सम्मान समारोह के दौरान श्रोताओं के समक्ष रखी है.

उनके श्रोताओं में कोई सामान्य लोग नहीं थे. के के बिडला फाउंडेशन की अध्यक्ष शोभना भारतिया, सरस्वती सम्मान से नवाजे गए जाने-माने असमी साहित्यकार लक्ष्मीनंदन बोरा, हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका और व्यास सम्मान से सम्मानित मन्नू भंडारी, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी बी पटनायक, राजेन्द्र यादव, अशोक वाजपेयी समेत साहित्य जगत की अनेक हस्तियाँ मौजूद थीं. ऐसे में मीरा कुमार की चिंता का कोई असर पाठक जगत पर नहीं पडेगा यह कहना गलत होगा. पर क्या साहित्य के पाठक सचमुच घट रहे हैं.

खुद मन्नू भंडारी का कहना था कि उनकी पुस्तक ' एक कहानी यह भी' (जिसके लिए उन्हें व्यास सम्मान दिया गया है) का दो साल के अन्दर तीसरा संस्करण आ चुका है. हिंदी में इस प्रकार से साहित्यिक पुस्तकों के बिक्री का इतिहास नहीं रहा है. ऐसे में यह मानना कि पाठक घट रहे है थोडा जल्दीबाजी होगी. पर बेहतरीन साहित्य कम जरूर आ रहा है.

खुद मीरा कुमार ने अपने संबोधन में धर्मयुग की चर्चा की और कहा कि स्कूल कॉलेज के दिनों में उन्हें इसका इन्तजार होता था क्योंकि उसमें मन्नू भंडारी की कहानियां श्रृंखला में होती थीं. पर आज धर्मयुग जैसी पत्रिकाएं नहीं हैं जो लोगों को पठन-पाठन की ओर अग्रसर करें. बेहतरीन लेखन की चर्चा की जा चुकी है. हाँ इन्टरनेट पर काफी सामग्री आजकल है जिससे यह प्रवृति प्रभावित हुई है. पर अगर क्वालिटी का लेखन हो तो पाठक नहीं आयेंगे ऐसा नहीं है. पर चिंता जायज है कि निर्जन होते पुस्तकालयों का क्या किया जाय. साथ ही यह भी चिंता सही है कि अगर मध्य वर्ग इस पठन-पाठन कि प्रवृत्ति से दूर हो गया तो उसे दुनिया में हो रहे बदलावों और उससे जुडी चिंताओं का पता नहीं चलेगा. अब ऐसे में रचनाकार और ब्लॉगर की जिम्मेदारियों के बारें में भी थोडा सोच लें.

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

तो आपका नंबर क्या है ?

भाई साहब आपका नंबर क्या है? कुछ ऐसा ही दिल्लीवासियों के साथ आने वाले दिनों में होने वाला है कि उनकी पहचान किसी नाम से नहीं बल्कि उसके नंबर से होगी! अब यह अच्छी खबर है या बुरी यह आप जानें पर तैयारी जारी है.

जाने-माने आईटी दिग्गज नंदन नीलेकनी साहब ने बुधवार को दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित के समक्ष एक प्रेजेंटेशन दिया जिसमें उन्होंने बताया कि दिल्ली में आने वाले तीन वर्षों में राजधानीवासियों को विशेष पहचानपत्र उपलब्ध करा दिया जाएगा. उसमें लोगों की पूरी जन्म पत्री उपलब्ध होगी. ठीक अमेरिका की तरह ही. यानी की आप की जन्म तिथि से लेकर आपके माता-पिता, शिक्षा, आय, आवास, फिंगर प्रिंट आदि-आदि.

नीलेकनी साहब आईटी दिग्गज भर नहीं है बल्कि पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन में उनकी कोई सानी नहीं है. वे इन्फोसिस के शीर्ष पर रहे है और उनकी पुस्तक 'इमेजिंग इंडिया' भी अद्भुत है. इस कारण से सरकार की ओर से उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर यूनिक आईडी अथॉरिटी का चेयरमैन भी बनाया गया है. पर जिस देश में सारी लोगों को अभी तक फोटो वाले मतदाता पहचान पत्र तक नहीं दिए जा सके हों और सभी नागरिकों का राशन कार्ड तक नहीं बन पाया हो वहां ऐसे प्रोजेक्ट को लेकर आशंका होना स्वाभाविक है कि इसका भी कहीं वही हश्र तो नहीं होने वाला है.

सिर्फ राजनीति ही नहीं नौकरशाही भी ऐसे प्रोजेक्ट पर कृपावान रही है. अगर भरोसा नहीं है तो उन लोगों से पूछिए जिन्होंने अपनी ओर से वोटर आईडी या राशन कार्ड बनवाने के प्रयास किये या पासपोर्ट जैसे महतवपूर्ण दस्तावेज में किसी दर्ज गलती को सुधारने की कोशिश की. उनकी आपबीती से पता चल जाएगा कि इन्हें हासिल करना कितना जद्दोजहद वाला काम है.

खैर, नीलेकनी साहब का प्रोजेक्ट कितना कारगर होगा यह तो आने वाले तीन -चार साल के बाद पता चलेगा पर माता पिता यह सोच कर खुश हो सकते हैं कि उनके बच्चों की पहचान उनके नाम से नहीं बल्कि नंबर से होगी - मसलन बी-२००४, स-७७१ आदि-आदि. इस कारण से उन्हें बच्चों के नामकरण के झंझट से मुक्ति मिल सकती है. पर शिक्षक अपने छात्र को या बॉस अपने कर्मचारियों को कैसे बुलाएगा? सोच कर बताइयेगा!