गुरुवार, 7 मई 2009

आपबीती: वोट देने के लिए लगानी पड़ी चुनाव आयोग में गुहार

युवा को हमने ए़क ऐसा मंच बनने का सपना देखा था जिसमें सबकी भागीदारी हो सके, खासकर युवा वर्ग के लोगों की। यह आपबीती इसी सपने की ए़क कड़ी है। जिसमें लेखिका ने ए़क आम वोटर के द्वारा भोगी जाने वाली दिक्कतों का खुलासा किया है।

शची

दिल्ली में मताधिकार का प्रयोग मेरे लिए ए़क ऐसा अविस्मरणीय संस्मरण बन गया है जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी। पप्पू नहीं बनने के लिए उप-मुख्य चुनाव अधिकारी तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा। वैसे तो 'पप्पू मत बनिए, वोट करिए' की गूँज तो चारों ओर है और लगभग सभी मीडिया चैनलों और घरानों ने बाकायदा इसबारेमें अभियान चला रखा है। पर पप्पू नहीं बनाना इस देश में पप्पू बनने से कहीं ज्यादा मुश्किल है।

वैसे तो वोट करने की मेरी आदत नहीं रही है पर पति के बार-बार के तानों (और अनुरोध ) से तंग आकर मैंने वोट करने का फ़ैसला कर लिया। बगैर यह समझे की भारत में बोगस वोटिंग तो आसान है पर सच्ची वोटिंग नहीं। खैर, अपने पति और बच्चों के साथ मैं करीब १२.३० बजे दिल्ली के द्वारका स्थित बी जी एस स्कूल, सेक्टर-५ पहुँच गयी, जहाँ पोलिंग बूथ बनाया गया था। मटियाला विधान सभा (एसी-३४) का बूथ नंबर-४५। वैसे चुनाव आयोग के अधिकारियों को बधाई देना चाहिए कि उन्होंने ऐसी बढ़िया जगह वोटिंग के लिए चुनी, खासकर गरमी के मौसम में। जो भी हो, पहले हमलोग स्कूल के बाहर के पोलिंग एजेंट के पास गए अपना नाम वोटर लिस्ट में देखने के लिए। वहां वोटर लिस्ट में हम दोनों का फोटो तो था पर नाम किसी और का था। इस पर पोलिंग एजेंट ने हमें अंदर जाकर चुनाव आयोग की आधिकारिक सूची देखने की सलाह दी।

अंदर जाकर सूची देखने पर नाम और फोटो दोनों लिस्ट में थे। हमदोनों ने रहत की साँस ली की चलो मुसीबत छूट गयी। पर मुझे नहीं पता था की अन्दर इससे बड़ा संकट खड़ा है। । अन्दर जाने पर मुझसे आई-कार्ड की मांग की गयी। चूँकि चुनाव आयोग ने वोटर आई कार्ड अब तक बना कर भेजने की जहमत नही उठाई और किसी आई कार्ड की मुझे जरूरत नहीं पडी तो ऐसे में किसी पहचान पत्र के होने का सवाल ही नहीं उठता था। हांलाकि मेरे पतिदेव ने कहा कि यह मेरे साथ है । मेरी पत्नी है और वोटर लिस्ट में इनका नाम है। चूँकि वोटर लिस्ट फोटो वाला है इसलिए इससे मिलान करके इन्हे वोट देने दिया जाय। पर पीठासीन अधिकारी जो कि ए़क बुजुर्ग महिला थी, ने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया यह कहते हुए कि उन्होंने अपने ऊँचे अधिकारियों से बात करने के बाद ऐसा निर्णय लिया है। वैसे हम दोनों ने समझाया की सरकारी नियम बोगस वोटिंग रोकने के लिए हैं न कि सही वोटरों को अपने मताधिकार का प्रयोग रोकने के लिए। हमारे पतिदेव ने मेरे लिए ए़क वचन पत्र भी देने का प्रस्ताव रखा । पर वह अधिकारी तैयार नहीं हुई। हार कर हमने चुनाव कार्यालय में अधिकारियों का दरवाजा खटखटाया। पर हाय रे, भारत के स्टील फ्रेम सरकारी अधिकारी, उन्होंने इन अधिकारियों को भी गोली दे दी। आखिरकार थक कर , इसके लिए उप मुख्य चुनाव अधिकारी के यहाँ गुहार लगाई गयी। पर सरकारी अधिकारियों को जनता के सुविधा केलिए बनाये गए नियमों को जनता के बाधा वाले नियमों में बदलने में महारत हासिल होती है। तो, पीठासीन अधिकारी ने वहां भी गोली दे दी। और हमारे पतिदेव से मांग की कि कोई ऐसा प्रमाणपत्र लाइए जिसमें मेरा और मेंरे पति का नाम हो। वैसे मेरे पति को वोट करने की अनुमति मिल गई थी अपना पहचान पत्र दिखने के बाद। पर इस मांग के बाद हमदोनों ने उस महान पीठासीन अधिकारी को करबद्ध प्रणाम किया और बगैर वोट डाले वापस हो लिए।

पर मेरे पतिदेव इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। आख़िर मैं भी उनके तानों को ही सुनकर वोट देने आयी थी। बहरहाल मेरे पति ने सोचा कि उप मुख्य चुनाव अधिकारी से संपर्क करने कीकोशिश की जाय तो शायद कोई हल निकल आए। संयोग से उप-मुख्य चुनाव अधिकारी उदय बक्शी से बात हो गयी । उन्होंने छूटते ही कहा कि आपको तो वोट देने के बारे में कह दिया गया था। बस आपको ए़क वचनपत्र देना पड़ेगा कि मैं उनकी पत्नी हूँ। बाद में पीठासीन अधिकारी को फिर से निर्देश दिएगये तब जाकर मैंने दिल्ली में अपने मताधिकार का प्रयोग किया, काफी देर की मशक्कत के बाद। आख़िर पप्पू नहीं बनना था। तो फिर आप सोचिये कि आप पप्पू रहना चाहेंगे या उसकी श्रेणी से बाहर रहेंगे।


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