भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोरोना का संक्रमण फिर से बढ़ रहा है, बल्कि कहें तो कोरोना के संक्रमण ने अर्थव्यवस्था को नख-शिख तक संक्रमित कर दिया है। कहां तो अर्थव्यवस्था में तेजी से V शेप के साथ सुधार की बात की जा रही थी, वहीं अब कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर ने पूरे देश को ही झकझोर दिया है। प्रतिदिन कोरोना के कारण हो रही मौतों से अर्थव्यवस्था अछूती नहीं रही है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि देश में आर्थिक और लोकशाही व्यवस्था में इन दिनों काफी कुछ बदलाव आया है और राष्ट्रीय स्तर के प्रेक्षकों का मानना है कि यह बदलाव सकारात्मक से कहीं ज्यादा नकारात्मक है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों चुनाव और अन्य लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को लेकर कुछ टिप्पणियां आई थीं। ये टिपण्णियां ये बताती हैं कि भले ही भारत की आस्था पूरी तरह से लोकतंत्र पर टिकीं हों पर हालिया बदलावों ने काफी कुछ गड्डमगड कर दिया है। मालूम हो कि प्रधानमंत्री कोरोना पर कई बैठकें की हैं, पर हालात बद से बदतर ही हुए हैं। कहने को तो इन दिनों नेताओं और नौकरशाही के बीच संबंधों में कुछ परिवर्तन तो आया ही है। अब जिला स्तर के प्रशासकों तक से सीधा संवाद किया जा रहा है। यह बताता है कि प्रशासकीय संरचना कोरोना के मामले में वह परिणाम देने में असफल रहा है जिसकी कि अपेक्षा अब तक की जाती रही है।
वैसे यह परिवर्तन देखने में बड़ा ही सरल सा परिवर्तन दिखता है, पर इसका उपचार बेहद ही जटिल और समय व श्रमसाध्य है। इस स्थिति के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि यहां तक की गहन जटिलता में उलझने और उलझाने के लिए सिर्फ दलगत राजनीति ही नहीं बल्कि नौकरशाही, जिसका नाम इन दिनों सबसे कम लिया जा रहा है और कई अन्य पक्ष भी जिम्मेदार हैं, जिनपर गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है।
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