रवीन्द्र दास दर्शन और संस्कृत के विद्वान होने के साथ-साथ एक अच्छे कवि भी है. उनकी कवितायेँ भावपूर्ण होने के साथ मर्मस्पर्शी भी होती हैं. उनकी ऐसी ही एक कविता पाठकों के लिए प्रस्तुत है उनके ‘अलक्षित’ से. रचना तो कुछ दिनों पूर्व की है पर भाव एकदम ताजे और दिल को छू जाने वाले:
तुम्हें चिट्ठी मैं लिखूंगा
जो हो फुर्सत तो पढ़ लेना
नहीं, मैं काह नहीं पाता जुबां से
बात मैं अपनी
कि मैं आकाश हो जाऊँ
अगर तुम हो गई धरती
तुम्हारी मरमरी बांहों को छू कर छिप कहीं पाऊँ
मुझे तकलीफ होती है तुझे जब फोन करता हूँ
कि गोया लाइन कटते ही
अकेला ही अकेला मैं
कभी फुर्सत बना कर
तुम जरा दो हर्फ़ लिख देना
उसीको बुत बनाकर मैं
कभी तो प्यार कर लूँगा
तुमें मेरी लिखावट में मेरे ज़ज्वात के चहरे
तेरे बोसा को जानेमन
कहीं कोई शरारत कर उठे
तो माफ़ कर देना
कि उनका हक छिना है
तो बगावत लाजिमी है
नहीं देना उन्हें बोसा
न उनका मन बढ़ाना तुम
अगर मिल जाए जो चिट्ठी
तो पलकें बंद कर लेना उसी सूरत में
चिट्ठी जरा हौले से सहलाना
जरा हौले से सहलाना
जरा ............... ।
sundar chitthi ..jiske liye bhee likhee hai use yakeenan sukoon milegaa....
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यार भरी है ये चिट्ठी.. ..जो हम सब की भावनाओं को व्यक्त करती प्रतीत होती है...
जवाब देंहटाएंआपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और प्यारी चिट्ठी लिखी है आपने! जिसके लिए भी आपने ये ख़त लिखा है उन्हें बेहद पसंद आएगा!