कुछ समय पूर्व एक लेख (हिंदी: आखिर कहाँ चूकें हम, २१ जून) में वरिष्ठ ब्लॉगर और इतिहास के विद्वान पी एन सुब्रमनियन ने अपनी प्रतिक्रिया में यह सवाल उठाया था कि आखिर देवनागरी लिपि का इतिहास ६००० साल पुराना कैसे हुआ? सुब्रमनियन जी के सवाल गंभीर थे और जवाब की अपेक्षा रखते हैं. ऐसे में मैंने इस मामले को फिर से डॉ. महेंद्र के सामने रखने का मन बनाया और साथ ही इतिहास में भी कुछ गोता मारने की कोशिश की.
देवनागरी मूलतः संस्कृत की लिपि कही जाती है पर संस्कृत का इतिहास भी ६००० साल पुराना नहीं है. "द वंडर दैट वाज इंडिया" के लेखक और इतिहासविद ए एल बाशम प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद को ज्यादा से ज्यादा २००० ईसा पूर्व का मानते हैं. इस प्रकार से यह देवनागरी के विकास की बात मात्र ४००० वर्ष पुरानी ही होती है. वह भी खरोष्ठी, ब्राह्मी व अन्य लिपियों के रास्ते से. हांलाकि बाशम साथ यह भी स्वीकारोक्ति भी करते हैं कि संस्कृत के अन्वेषण के परिणामस्वरुप ही पश्चिम में ध्वनिविज्ञान कि उत्पत्ति हुई है.
जैसा कि बाशम लिखते हैं " प्राचीन भारत के महत्तम उपलब्धियों में से एक उसकी विलक्षण वर्णमाला है जिसमें प्रथम स्वर आते हैं और फिर व्यंजन जो सभी उत्पत्ति क्रम के अनुसार अत्यंत वैज्ञानिक ढंग से वर्गीकृत किये गए हैं. इस वर्णमाला का अविचारित रूप से वर्गीकृत तथा अपर्याप्त रोमन वर्णमाला से, जो तीन हजार वर्षों से क्रमशः विकसित हो रही थी, पर्याप्त अंतर है. पश्चिमी देशों द्वारा संस्कृत के अन्वेषण के परिणामस्वरूप ही यूरोप में ध्वनिविज्ञान कि उत्पत्ति हुई है."
खैर, इस कथन से संस्कृत की श्रेष्ठता भले ही सिद्ध होती हो पर इससे देवनागरी के ६००० साल पुराने होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है. पर डा. महेंद्र के अनुसार लिपि का विकास महज वेदों के विकास भर से नहीं जुड़ा हुआ है. वस्तुतः इनका विकास समझने के लिए चित्र लिपि और भित्ति चित्रों की ओर भी देखना होगा जहाँ से दुनिया कि सभी लिपियों का विकास हुआ है. चित्र लिपि से देवनागरी के विकास की बात समझनी हो तो पवर्ग सबसे अच्छा उदाहरण है जिसमें उच्चारण के समय ओष्ठद्वय ठीक उसी प्रकार की सरंचना बनाते हैं जिस प्रकार से पवर्ग के वर्ण लिखे जाते हैं.
डा. महेंद्र का यह भी कहना है कि अगर यह चित्र लिपि का देश में सबसे प्राचीन प्रमाण में से एक देखना हो तो मध्य प्रदेश में भीमवेदका की गुफाएं देखनी चाहिए. ये गुफाएं चित्र लिपि का बेजोड़ नमूना है और ६००० वर्ष से भी ज्यादा पुराना इसका इतिहास है. इसमें ज्यामितिक चित्रों से लेकर आधुनिक लिपियों के प्रमाण मिल जाते हैं. ऐसे में देवनागरी के विकास का इतिहास ६००० वर्ष से ज्यादा पुराना होता है. वैसे वेदों के बारे में एक बात और समझने की है कि वेद लिखित रूप में काफी बाद में अस्तित्व में आये. पर वाचिक परंपरा में वेदों ने भोजपत्रों पर अपना अस्तित्व कायम करने से पूर्व सैकडों या शायद हजारों सालों की यात्रा तय की है.
बहुत ही रोचक जानकारी प्रदान की है
जवाब देंहटाएंसाधुवाद!
बहुत ही रोचक विषय आपने चुना है, काफी अच्छी जानकारी मिली है, निसंदेह वेदों ने लिखित रूप बहुत बाद में लिया भोजपत्रों पर, उसके पहले तो इनका वाचन ही होता था, पीढी-दर-पीढी इसका प्रादुर्भाव होता गया..और जैसे की आपकी रचना ने बताया मध्यप्रदेश में स्थित गुफाएं इसका प्रमाण हैं ही...
जवाब देंहटाएंआज इस लेख को पढ़ कर अभिमान हुआ की इतनी समृद्ध संस्कृति और भाषा के अंश मुझमें भी विद्यमान है...
साधुवाद !....
सैकडों या शायद हजारों सालों की यात्रा तय की है.
जवाब देंहटाएंयहाँ सैंकड़ो ही सही है। हजारों गलत हो लेगा। चारों वेदों के लिखने में अधिक से अधिक एक हजार साल का समय भी तय कर लिया जाए। तो संस्कृत के ठीक उस के बाद के ग्रंथों का काल निर्धारण हम ठीक से कर लेते हैं। यदि वेदों का सृजन काल पीछे ले जाएँ तो एक रिक्त अंतराल मिलेगा जो बढ़ता चला जाएगा जितने हम पीछे जाएंगे। तो क्या इस बीच सारा भारत या वैदिक लोग सोए हुए थे?
आभार आपका इस बेहतरीन जानकारी का!!
जवाब देंहटाएंदिनेशराय जी, काल निर्धारण बेहद जटिल काम है ख़ास कर वेदों के मामले में, जिसके बारे में हमारी आस्थाएं जुडी हुई हैं. इसलिए मैंने हजारों के पहले 'शायद' का प्रयोग किया है. इतिहासकार ऋग्वेद का रचनाकाल २००० ईसा पूर्व से लेकर ५०० ईसा पूर्व मानते हैं. वैसे तो ऋग्वेद को ६००० ईसा पूर्व मानने वालों की भी कमी नहीं है. पर २०००-५०० ईसा पूर्व के काल से बाशम भी सहमत हैं. अगर इसे सही भी माना जाय तो दुनिया का कोई भी ऐसा ग्रन्थ नहीं है जिसका रचनाकाल १५०० वर्षों का रहा हो.
जवाब देंहटाएंयही हाल संस्कृत का भी है. इतिहासकारों की मानें तो पाणिनि के व्याकरण 'अष्टाध्यायी' की रचना ४०० ईसा पूर्व हुई थी पर यह अपने आप में इतना वैज्ञानिक, सशक्त और शुद्ध था कि करीब २३०० वर्षों तक संस्कृत में फेरबदल की जरूरत ही नहीं महसूस हुई. कुछ ऐतिहासिक कारण भी रहे. ऐसे में वाचिक परंपरा का कितना लम्बा काल रहा होगा इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है. पर आपकी राय का स्वागत है.
आपका ये पोस्ट मुझे सबसे बढ़िया लगा! मुझे बहुत ही अच्छी जानकारी प्राप्त हुई और काफी कुछ नए चीज़ों के बारे में जानने को मिला जो बहुत ही ज्ञानवर्धक है! इस रोचक विषय को चुनने के लिए और इतनी सुंदर जानकारी बांटने के लिए आपको आभार!
जवाब देंहटाएंKya bakvaas hai?
जवाब देंहटाएंरोचक है यह मामला
जवाब देंहटाएंभाई इतिहास अगर न भी उतना पुराना तो भी महत्वपूर्ण यह है कि अपने वर्तमान रूप में कुछ दशक पुरानी हिन्दी ने कितना कुछ दिया है विश्व साहित्य को।
जवाब देंहटाएंदिनेशराय जी के सटीक प्रश्न और आपके स्पष्टीकरण के बीच एक गहरी खाई है !
Good ,input on historical topic.Time may be matter of discussion but it is always approximation because no carbon dating test is available for language.
जवाब देंहटाएंStructure and development of language gives an indication but even then it is presumption only.
Thanks for this rich discussion.
Dr.Bhoopendra
interesting topic , i hope u will provide time to time about historical knowledge.
जवाब देंहटाएंjust amazing , kya khoob likha hai mere dost , padhkar apni hindi bhasha ke liye man gadgad ho gaya ji , bus badhai hi badhai
जवाब देंहटाएंregards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
pust pramano ke abhawno main anuman varth hai
जवाब देंहटाएंMost world languages have modified their alphabets and use most modern alphabet in writings.Vedic Sanskrit alphabet have been modified to Devanagari and to simplest Gujanagari(Gujarati) script.
जवाब देंहटाएंWhy not adopt a simple script at national level?