तुम
होती हो पास
जब खिलते हैं फूल महुआ के
खुशबू भीनी-भीनी सी बिखर जाती है
फिजां में
लगता है महुआ का खुमार
सर चढ़ कर बोलेगा
तभी आना होता है तुम्हारा
पत्तों की सरसराहट से छुप कर
ठीक वैसे ही
जैसे चाँद छुप जाता है बादलों की ओट में
इन दिनों शर्म के मारे
पर चांदनी उसकी छुपती नहीं
तुम
होती हो मेरे पास
जब चलती है हवा
इन चिपचिपाती गर्मियों में
ठण्ड का अहसास देती हुई
रेगिस्तान में ज्यों चल पड़े
बर्फीली बयार
तुम
होती हो पास
जब भरी भीड़ में
होता हूँ तनहा
किसी समंदर के लाइट पोस्ट के मानिंद
लहरों के शोर में तनहा, अडोल,
अकेले
चुपचाप तुम्हारा यूँ दबे पाँव आना
न जाना छोड़कर
तनहा
कहीं
यूँ लगता है
खुशबू बस गयी हो
हवा में
या
घुल गया हो रंग फूलों में
कुछ नया सा
कुछ अपना सा
कि जुदा करना मुश्किल हो
वाह क्या बात है! बहुत ही ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! जितनी रोमांटिक उतना ही दिल को छू लेने वाली रचना है! कमाल कर दिया आपने!
जवाब देंहटाएंतुम
जवाब देंहटाएंहोती हो पास
जब खिलते हैं फूल महुआ के
खुशबू भीनी-भीनी सी बिखर जाती है
फिजां में
लगता है महुआ का खुमार
सर चढ़ कर बोलेगा
vah vah bahut khoob
bahut hi badhiya ...........yado me mahua ki khushboo .........bahut hi badhiya
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar
जवाब देंहटाएंबेहतरीन खूबसूरत रचना है.....अच्छी लगी पढ़कर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर बेहतरीन रचना !
जवाब देंहटाएंपहली बात महुआ के फूलों के साथ किसी से मिलना वर्जित है,
जवाब देंहटाएंऔर इस तरह कि कविता लिख कर पाठकों को पढाना, इस पर तो बैन लगना चाहिए, हम जैसे लोग जिन्होंने कभी नशा पान नहीं किया, होश खोने लगे हैं ....
मैं बाल-बच्चेदार हूँ, और आपकी कविता ने कुछ ऐसी-वैसी भावनाओं को जगाने में सफलता पाई है, जैसा बबली जी ने कहा है, जो मेरी सेहत के लिए ठीक नहीं है .....
और इस सफलता के लिए ह्रदय से बधाई ...
'अदा' जी महुआ के फूलों के साथ मिलना वर्जित है पर उसका खिलना नहीं. अब खिलेगा तो खुमार चढेगा ही. अब आपने तो कविता बैन करने की बात कर दी. मैंने तो कोई १७-१८ साल बाद एक रचना लिखी है बैन कर देंगे तो हिम्मत पस्त हो जाएगा जैसे सातवी-आठवीं में मेरे गुरुजनों ने कविता लिखना बंद करा दिया था.
जवाब देंहटाएंअच्छा तो प्रॉब्लम यहाँ पर है, कहते सुना हैं (इस मामले में हम निपट गँवार हैं) ना कि शराब जीतनी पुरानी होती है खुमार उतना ही चढ़ता है, अब आप १७-१८ पुरानी भावनाओं को अब हमें पढायेंगे तो उनकी तासीर भी मय से मिलती-जुलती ही होगी..
जवाब देंहटाएंमैं यह सबकुछ आपकी से कविता बहुत अधिक प्रभावित होकर ही कह रही हम, आशा है आपको अंदाजा लग हु गया होगा....
अरे बाप रे! इतना बड़ा भ्रम! अदा जी ऐसा वैसा कुछ भी नहीं है. हम भी परिवार वाले हैं.
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