बुधवार, 22 जुलाई 2009

जब सूर्यग्रहण के चक्कर में फंसे हनुमान जी

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सूर्य ग्रहण का नजारा देखने के लिए कल रात से ही तैयारी कर ली थी- कैमरा, फिल्म वाला चश्मा ... - पर इन्द्र भगवान की कृपा. ऐन वक्त पर धोखा दे दिया. बादलों के साथ वो लुका-छिपी खेली कि टीवी के सामने बैठ कर ही पूर्ण ग्रहण देखने का संतोष करना पड़ा.

नहीं तो क्या-क्या तैयारी मैंने कर रखी थी मैं आपको कैसे बताऊँ? अब कल गया था शाम को हनुमान जी के मंदिर में. मंगलवार था हनुमान जी के दर्शन जरूरी थे. वैसे भी हनुमान जी एकमात्र देवता (वैसे देवगण उन्हें यह श्रेणी देने को तैयार नहीं है) है जिन्होंने सूर्य जैसे विशाल ब्रह्मांडीय पिंड को निगलने का दुस्साहस दिखाया था- कोई फल समझ कर! कम से कम तुलसीदास जी और वाल्मीकि तो यही कह गए हैं नहीं तो इस अज्ञ को इतना ज्ञान कहाँ?

खैर, चर्चा हनुमान जी की हो रही थी. तो मंदिर पहुँचने पर देखा तो हनुमान जी के दर्शन की लाइन ही गायब थी. मात्र दस बारह लोग खड़े थे. मैं खुश भी हुआ और विस्मित भी. खुश इसलिए की चलो जल्दी निबट लेंगे और विस्मित इसलिए कि यह क्या हुआ? इस विकसित दिल्ली में हनुमान भक्तों कि संख्या में एकदम से गिरावट कैसे आ गयी. मानो लाइन न हुई बजट के दिन सेंसेक्स का ग्राफ हो गया. पर इससे पहले मैं किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाता कि पता चला मैं पवनपुत्र के सामने खडा हूँ.

पर यह क्या? जिस परमवीर ने सूर्य को निगल कर पूरी धरती पर ना जाने कितना लम्बा सूर्य ग्रहण कर दिया था वे खुद आज सूर्य ग्रहण की डर से लाल वस्त्र ओढे पड़े थे. जय हो हमारे पंडितों की. इधर उ़धर नजर दौडाई तो पता चला कि सभी मूर्तियों पर यही नजारा था. पूछा तो पता चला कि सूतक है और ग्रहण ख़त्म होने तक ऐसा ही रहेगा. अब अंधविश्वाशी आदमी तो आदमी भगवान तक को हमारे पंडितों ने ग्रहण के नाम पर डरा के रखा हुआ था. हनुमान जी तक को नहीं छोडा, इंसान को क्या छोडेंगे. अब, हनुमान जी क्या सोच रहे होंगे यह तो सिर्फ अनुमान ही कर सकते हैं. पर इतना तो जरूर कसमसा रहे होंगे कि ग्रहण तक इन पुजारियों ने मुझे ढँक रखा है इनको फिर से रामायण पढ़ाऊं. नहीं तो कम से कम टीवी तो देखने देते तो मैं ग्रहण का नजारा अपनी आँखों से ही सही देख तो लेता! अब इतने लम्बे सूर्य ग्रहण के लिए पूरी एक सदी तक इन्तजार करना पडेगा. आपकी क्या राय है?

11 टिप्‍पणियां:

  1. भगवान भी मनुष्य के आगे लाचार है इसलिये कि मनुष्य ने ही उन्हे पैदा किया है मनुष्य ही उन्हे बनाता है मनुष्य ही उन्हे वर्गो मे विभाजित करता है उनका बेचारो का रोल ही क्या है?

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  2. In mahanubhaavon ne hanumaan ji ko bhee nahi bakhshaa. Unhe to chhod dete!

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  3. चलो, कोई नहीं..विडियो में देख लेंगे कपड़ा हटने के बाद. मन छोटा न करें. :)

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  4. राम जी फंसे पड़े थे, सेवक की क्या औकात थी।

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  5. Sahi kaha....Bechare hanumaan ji bhi soch rahe honge kaise logon ke chakkar me fans gaya,jinhe yah bhi yaad nahi ki sabse bada grahan to soory ko maine hi lagaya tha....

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  6. इन पंडों ने यह तक नहीं सोचा की हनुमान जी को पूरी एक सदी तक गदा और संजीवनी पर्वत लेकर खडा रहना पड़ेगा, ऐसे पूर्ण सूर्य ग्रहण के लिए. हनुमान जी को तो यह पर्वत ही पंडों के हाथ में दे देना चाहिए. तब पता चलेगा.

    राम सेवक

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  7. अब इतना देखने के बाद तो मुझे भी इसमें कुछ विदेशी हाथ की बू आने लगी है...

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  8. अरे कोई बात नहीं! उदास होने की ज़रूरत नहीं! बेचारे हनुमान जी!

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  9. Let us not be irreverent to Hanuman ji and priests. Either u visit the temple or simply stop it 'cos God is everywhere. Jai Bajrangbali.

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  10. मैं खुशकिस्मत रहा की चैनल की दया के चलते सदी के सबसे बड़े ग्रहण को कुरुक्षेत्र में देख पाया.... कहते हैं की इस दिन सभी देवता कुरुक्षेत्र में रहतें हैं... तो सौभाग्शाली भी.
    वैसे जहाँ तक मुझे पता है सूतक के दौरान मंदिर बंद कर दिए जाते हैं... लाल कपडे वाले हनुमान जी की बात समझ में नहीं आई... शायद धंधे की सोच पंडितों को ये नायाब तरीका सूझ गया हो.....
    www.nayikalam.blogspot.com

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