जीबी रोड: खिड़की के उस पार
हमारे समाज में एक जगह ऐसी भी है जहाँ बेटी पैदा होने पर खुशियाँ मनाई जाती है और बेटा पैदा होने पर मुंह सिकुड़ जाता है, ये बदनाम गलियों की दास्ताँ है। दिल्ली के जी बी रोड की अँधेरी जर्जर खिड़कियों में पीली रोशनी से इशारा करती लड़कियों के विषय में जानने की फुर्सत शायद ही किसी के पास हो। भारी व्यावसायिक गतिविधियों और भीड़ भरे इस बाजार में वहां के व्यापारियों के लिए यह कुछ नया नहीं है। शरीफ लोग मुंह उठाकर ऊपर नहीं देखते।
महिलाएं तो शायद ही ऐसा करती हों ।
अपील
अगर आप समाज के बारे में सोचतें है तो पूरी रिपोर्ट पढें, और अपना सुझाव दें की कैसे हम समाज के इस वर्ग को मुख्य धारा में जोड़ सकते है ताकि आने वाले वक़्त में वेश्यावृति में लिप्त महिलाओं के बच्चे भी सुनहरे भारत के निर्माण में आपना योगदान दे सकें। बधुओं यह विषय कनखियों से बात करने का नहीं, भवें सिकोड़ने का नहीं, पान या चाय के दुकान पर मसखरी करके बतियाने का नहीं बल्कि सजगता से सोचने का है, जिससे उज्जवल भारत के निर्माण में इन अँधेरी गलियों के बच्चे भी इटें जुटा सकें।
सुभाष सिंह
http://www.insidestorymedia.com/spacial_1.html
Rightly said bandhu,a lot of work is to be done.I am here to cooperate with you in yr mission .with regards and welcome to blog world .
जवाब देंहटाएंthankfully
Dr.Bhoopendra
ek vicharneey prashn samane rakhane ke liye dhanyawaad!!
जवाब देंहटाएंचिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है ,लेखन के लिए शुभ कामनाएं ............
जब तक इन का काम गैरकानूनी रहेगा,यह वर्ग तिरस्कृत रहेगा ,हर तरह का शो्षण होगा.सदियो से यह एक पेशा है,इसे कानूनी होना चाहिये!
जवाब देंहटाएंsahibat hai,narayan... narayan... narayan
जवाब देंहटाएंहुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ..........
जवाब देंहटाएंइधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूंऽऽऽऽऽऽऽऽ
ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)
Ek Din is par charcha karenge, REPORT padhne ke baad.