गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

दूसरे खेलों में लगे आई पी एल का पैसा

आई पी एल के बहाने जिस तरह से लोगों के नाम और कारनामे उजागर हो रहे हैं उसके दोषियों और इस षड्यंत्र में फंसने वाले लोगों का नाम पूरी तरह से बाहर आने में अभी तो वक्त लगेगा और साथ ही पूरी सच्चाई सामने आने में भी. पर इस मामले यह बात तो पूरी तरह से आईने की तरह साफ़ है कि इस पूरे प्रकरण में सारे क्रिकेटर महज एक मोहरे की तरह बन कर रह गए है और पूरी मलाई उन लोगों के बीच बंट कर रह गयी है जिनका क्रिकेट से कोई न तो ख़ास नाता है और ना ही उन्होंने क्रिकेट जैसे अंतर्राष्ट्रीय खेल को बढाने में कोई जद्दोजहद किया है. उन्हें बस क्रिकेट से होने वाली भारी-भरकम कमाई भर से मतलब है.
जब २०-२० का मैच शुरू हुआ था तो यह माना गया था कि यह दुनिया भर में फुटबाल की बढ़ती लोकप्रियता को रोकने के लिए किया गया है और आई पी एल की शुरुआत को क्रिकेट को चरमोत्कर्ष पर पहुचाने वाला कदम माना गया था. साथ ही यह भी कहा गया कि इससे प्रेरणा लेकर अन्य खेलों का भी उद्धार हो पायेगा.

पर अन्य खेलों की बात तो छोड़ दीजिये क्रिकेट का ही क्या लाभ हो रहा है वह इस पूरे प्रकरण से स्पष्ट हो रहा है. पुराने दिग्गज खिलाड़ी भी अब मान रहे हैं कि इस आई पी एल से स्थापित खिलाड़ियों के अलावा नए खिलाड़ियों को कोई ख़ास फायदा नहीं हो रहा है सिवाय इसके कि उन्हें भी टीम में जगह दे दी गयी है और उन्हें कुछ पैसे मिलने लगे हैं. क्रिकेट के खेल के उत्थान की बात छोडिये. अब अगर ऐसे में इससे प्रेरणा लेकर इसके उत्थान की बात की जाय तब तो खिलाड़ियों का खेल हो गया. होना तो यह चाहिए कि सरकार की ओर से खुली लूट मचाने वाले इस आयोजन के आयोजकों को अन्य खेलों के विकास की भी जिम्मेदारी देनी चाहिए थी. नहीं तो इनके कमाई का एक सुनिश्चित हिस्सा एक फंड बनाकर अन्य खेलों के विकास के लिए सुरक्षित रखा जाता. क्योंकि इस आयोजन में देश के दर्शकों का का बड़ा पैसा और समय बर्बाद होता है. साथ ही सरकारी तंत्र को भी इन आयोजनों की सुरक्षा और क़ानून व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए खासे संसाधन झोंकने पड़ते हैं और बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है.

ऐसे में इस जिम्मेदारी से बचकर ये भाग नहीं सकते. साथ ही इस देश में एक ही खेल बढे और दूसरे हाशिये पर पड़े रहें तो स्कूलों में खेल के प्रति न तो सच्ची इच्छा जागेगी न ही लगन और दूसरे खेल मरते रहेंगे.

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