लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार चिंतित हैं इन दिनों. उनकी चिंता यह है कि आजकल मध्य वर्ग में साहित्यिक पुस्तकों को पढने का शौक गायब होता जा रहा है. पुस्तकालय खाली पड़े हुए हैं. यहाँ तक कि संसद के पुस्तकालय, जो कि देश के बेहतरीन पुस्तकालयों में से एक है, में लोग बेहद कम दिखाई देते हैं. अपनी यह चिंता उन्होंने देश के प्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान और व्यास सम्मान समारोह के दौरान श्रोताओं के समक्ष रखी है.
उनके श्रोताओं में कोई सामान्य लोग नहीं थे. के के बिडला फाउंडेशन की अध्यक्ष शोभना भारतिया, सरस्वती सम्मान से नवाजे गए जाने-माने असमी साहित्यकार लक्ष्मीनंदन बोरा, हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका और व्यास सम्मान से सम्मानित मन्नू भंडारी, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी बी पटनायक, राजेन्द्र यादव, अशोक वाजपेयी समेत साहित्य जगत की अनेक हस्तियाँ मौजूद थीं. ऐसे में मीरा कुमार की चिंता का कोई असर पाठक जगत पर नहीं पडेगा यह कहना गलत होगा. पर क्या साहित्य के पाठक सचमुच घट रहे हैं.
खुद मन्नू भंडारी का कहना था कि उनकी पुस्तक ' एक कहानी यह भी' (जिसके लिए उन्हें व्यास सम्मान दिया गया है) का दो साल के अन्दर तीसरा संस्करण आ चुका है. हिंदी में इस प्रकार से साहित्यिक पुस्तकों के बिक्री का इतिहास नहीं रहा है. ऐसे में यह मानना कि पाठक घट रहे है थोडा जल्दीबाजी होगी. पर बेहतरीन साहित्य कम जरूर आ रहा है.
खुद मीरा कुमार ने अपने संबोधन में धर्मयुग की चर्चा की और कहा कि स्कूल कॉलेज के दिनों में उन्हें इसका इन्तजार होता था क्योंकि उसमें मन्नू भंडारी की कहानियां श्रृंखला में होती थीं. पर आज धर्मयुग जैसी पत्रिकाएं नहीं हैं जो लोगों को पठन-पाठन की ओर अग्रसर करें. बेहतरीन लेखन की चर्चा की जा चुकी है. हाँ इन्टरनेट पर काफी सामग्री आजकल है जिससे यह प्रवृति प्रभावित हुई है. पर अगर क्वालिटी का लेखन हो तो पाठक नहीं आयेंगे ऐसा नहीं है. पर चिंता जायज है कि निर्जन होते पुस्तकालयों का क्या किया जाय. साथ ही यह भी चिंता सही है कि अगर मध्य वर्ग इस पठन-पाठन कि प्रवृत्ति से दूर हो गया तो उसे दुनिया में हो रहे बदलावों और उससे जुडी चिंताओं का पता नहीं चलेगा. अब ऐसे में रचनाकार और ब्लॉगर की जिम्मेदारियों के बारें में भी थोडा सोच लें.
chinta to jaayaj hee hai par upaay bhee kya hai is multimedia ke yug men
जवाब देंहटाएंSantosh Kr.