शनिवार, 10 जुलाई 2021

मोदी 2.0 की सरकार

 

Chandan Sharma

पिछले दिनों मोदी सरकार में हुए फेरबदल पर वैसे तो काफी कुछ लिखा और कहा जा चुका है - जातीय समीकरण से लेकर क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति और कोविड के दूसरे दौर से बने हालात से निकलने की मोदी सरकार की जद्दोजहद। पर इस जद्दोजहद के लिए मोदी को एक ऐसे युवा और जीवंत टीम की जरूरत थी जिनसे नए दौर या कोविड की महामारी से उपजे आर्थिक, सामाजिक और अन्य चुनौतियों से जमकर सामना किया जा सके।

इसलिए किसी को इस बात से आश्चर्य नहीं हुआ कि मोदी की इस नई 2.0 वाली टीम में युवा चेहरों को तो इस तर्ज पर शामिल किया गया कि मंत्रिमंडल की टीम की उम्र तीन साल तक घटकर 61 से 58 साल हो गई। साथ ही इसमें मोदी अपने सहयोगियों को भी इसमें सम्मिलित करने में सफल रहे। खास तौर से जेडीयू, जो कि अबतक बाहर से ही एनडीए का समर्थन करता रहा था, उसे भी मनाने में मोदी सफल रहे। हालांकि बिहार के मामले में इस नई फेरबदल में राज्य को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ है क्योंकि बिहार के मंत्रियों की संख्या में कोई इजाफा नहीं हुआ है। एलजेपी के पशुपति पारस को रामविलास पासवान की जगह लाया गया, जबकि जेडीयू के आरसीपी सिंह को लाने के एवज में बिहार के कानून आई टी मंत्री रविशंकर प्रसाद को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। दिलचस्प यह है कि यह स्थिति तब रही, जबकि मंत्रिपरिषद् में 36 नए चेहरों को स्थान दिया गया।

दिल्ली की स्थिति भी कोई भिन्न नहीं है। दिल्ली में भी मीनाक्षी लेखी को मंत्रिपरिषद् में शामिल करने के लिए हर्षवर्धन को अपना पद छोड़ना पड़ा। कहने को तो कहा जा रहा है कि कोविड की चुनौतियों के निपटने में विफलता का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ा गया है पर यह भी सही है कि अगर हर्षवर्धन की योग्यता और अनुभव और काम में कमी रही होती तो भारत में कोविड से होने वाली मौतों की संख्या मौजूदा संख्या से कई गुनी होती।

बहरहाल, इस समय यह जिम्मेदारी युवा चेहरे मनसुख मोडवाडिया को दी गई है और तीसरे दौर की चुनौती से निबटने के लिए वे कुछ आपातकालीन घोषणाएं भी करवाने में सफल रहे हैं।

हांलांकि, जैसा कि पहले भी कहा जाता रहा है कि यह फेरबदल आने वाले चुनावों को लेकर ज्यादा है। ऐसे में उत्तर प्रदेश से सात मंत्रियों को लिए जाने की बात को लेकर कोई ज्यादा आश्चर्यजनक नहीं है। अनुप्रिया पटेल का सहयोगी दल की ओर से शामिल होना भी साफ करता है कि आने वाले चुनाव मंे उनके दल की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी।

दूसरी ओर, उड़ीसा को भी कई महत्वपूर्ण विभाग सौंपे गए हैं। अश्विनी वैष्णव को पहली ही बार में तीन महत्वपूर्ण मंत्रालयों को सौंपा जाना इस मामले में उड़ीसा के महत्व को उजागर करता है। दूसरी ओर धमेंद्र प्रधान को शिक्षा और कौशल विकास में लाया जाना कहीं कहीं यह दर्शाता है कि मोदी सरकार कहीं कहीं पेट्रोलियम मंत्रालय में उनकी दक्षता का इस्तेमाल शिक्षा के क्षेत्र में भी करना चाह रही है।

हालांकि मोदी सरकार ने ज्योर्तिआदित्य सिंधिया को केंद्रीय विमानन मंत्रालय का कार्यभार सौंपा है पर यह मंत्रालय एयर इंडिया के भारी भरकम घाटे से निकलने के लिए पिछले काफी समय से जूझ रहा है। ऐसे में सिंधिया का प्रवेश कोई कम चुनौतीपूर्ण नहीं है।

पर इस चुनौतीपूर्ण समय में अनुराग ठाकुर को सूचना और प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा भी सौंपा गया है। कोविड और बंगाल के चुनावों के बाद उपजे हालात पर यह काम कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। पूर्व मंत्री प्रकाश जावडेकर में किसी भी प्रकार से इस काम में मीन-मेख निकालना कठिन है। पर इस मंत्रालय की बानगी कुछ ऐसी है कि यहां के हर काम पर सबकी नजर होती है और इस मंत्रालय में मंत्रियों का आना जाना लगा होता है।

बहरहाल, मोदी सरकार में पिछले कुछ दिनों में नए-नए रेग्यूलेशन और कानूनों से जिस प्रकार का दबाव लोगों पर बना है, उससे भी निबटना भी कोई कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। हालांकि प्रेक्षकों के अनुसार ऐसी स्थिति में हालात से निबटने के लिए लोग विपक्ष की ओर देखते हैं पर वर्तमान में लोग सरकार से ही आस लगाए बैठे हैं चाहे वह नया आईटी कानून हो या किसी नए क्षेत्र में रेग्यूलेशन का। कोविड में वैसे भी लाॅकडाउन से देश की 85 फीसदी जनता को जिन दिक्कतों से गुजरना पड़ा है उसमें यह इजाफा ही कर रहा है क्योंकि यह लाइसेंस राज की ही याद दिलाता है। मोदी की 2.0 सरकार को जिन संकटों से निजात पाने की जरूरत होगी, उनमें से यह एक है। वैसे इस बार मोदी सरकार की मदद के लिए महिलाओं की बड़ी टीम भी है।